नगर भ्रमण करने के बाद कहां जाते हैं उज्जैन के राजा भगवान महाकाल?
विश्व प्रसिद्ध भगवान महाकालेश्वर की सोमवार को निकलने वाली परंपरागत शाही सवारी में शामिल लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा एवं सुविधा के मद्देनजर जिला प्रशासन ने व्यापक स्तर पर तैयारियों को अंतिम रुप दिया।
नगर भ्रमण करने के बाद कहां जाते हैं उज्जैन के राजा भगवान महाकाल |
देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में, प्रमुख महाकालेश्वर को महाराजाधिराज मानते हैं। इस धार्मिक त्योहार में, घुड़सवारी को हर साल दुल्हन की तरह सजाया जाता है। महाकालेश्वर शाही के स्वागत का स्थान कलस काल के दौरान बनाया गया था। जहां हजारों क्विंटल प्रसाद भी वितरित किया जाता है। सवारी के दौरान सम्पूर्ण शहर हर हर महादेव, जय जय महाकाल सहित कई तेजस्वी नारों से गूंज उठता है।
सबसे पहले, भगवान महाकाल के राजाधिराज के रूप को एक विशेष कमरे से आमंत्रित कर उनका विधिविधान से आह्वान किया जाता है।
उसके बाद उन्हे मन्त्र और आरती के साथ अनुग्रह किया जाता है जिससे वे अपने नगर भ्रमण के लिए तैयार होते है |
भगवान महाकाल के राजा रूप प्रजा का हालचाल जानने निकलते हैं तब उन्हें उपवास होता है। अत: वे फलाहार ग्रहण करते हैं। विशेष कर्पूर आरती और राजाधिराज के जय-जयकारों के बीच उन्हें चांदी की नक्काशीदार खूबसूरत पालकी में प्रतिष्ठित किया जाता है।
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यह पालकी इतने सुंदर फूलों से सज्जित होती है कि इसकी छटा देखते ही बनती है। भगवान के पालकी में सवार होने और पालकी के आगे बढ़ने की बकायदा मुनादी होती है।तोपों से उनकी पालकी के उठने और आगे बढ़ने का संदेश मिलता है। पालकी उठाने वाले कहारों का भी चंदन तिलक से सम्मान किया जाता है। आ रही है पालकी, राजा महाकाल की के नारों से मंदिर गूंज उठता है।
भगवान की सवारी मंदिर से बाहर आने के बाद गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है और सवारी रवाना होने के पूर्व चौबदार अपना दायित्व का निर्वाह करते हैं और पालकी के साथ अंगरक्षक भी चलते हैं।
शहर की परिक्रमा हर्षोल्लास से संपन्न हो जाती है और मंदिर में भगवान राजा प्रवेश करते हैं तो उनका फिर उसी तरह अनुष्ठानिक आह्वान किया जाता है कि सफलतापूर्वक यह सवारी संपन्न हुई है अत: हे राजाधिराज आपके प्रति हम विनम्र आभार प्रकट करते हैं।
शाही सवारी निकलने के पूर्व सामाजिक संगठनों एवं अधिकारियों की एक बैठक हुई। शाही सवारी को लेकर जिला एवं पुलिस प्रशासन ने सभी अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए हैं। इस सवारी में जिले के
सम्पूर्ण पुलिस फोर्स के अलावा महिला पुलिस सहित लगभग डेढ़ हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया जाएगा। सवारी के सम्पूर्ण मार्ग के आसपास बैरिकेट्स लगाए गए हैं।
बहुत कम लोग जानते हैं कि जब सवारी मंदिर में आ जाती है उसके बाद राजा रूप धारण किए महाकालेश्वर भगवान कहां जाते हैं।
दरअसल मंदिर वापिस आने के बाद यहां एक बहुत ही खूबसूरत परंपरा निभाई जाती है। भगवान महाकाल अपना व्रत खोलते हैं। उन्हें सुस्वादु व्यंजन से बनी पारंपरिक मालवा थाली परोसी जाती है।
महाकालेश्वर देव को यह भोग लगाने के बाद उनका यह विशेष प्रसाद उनकी पालकी उठाने वाले कहारों को ससम्मान परोस कर खिलाया जाता है।
फिर कलेक्टर, कमिश्नर और शहर के गणमान्य नागरिक तथा वरिष्ठ पुजारियों की उपस्थिति में महाकाल बाबा की जलती मशालों से आरती की जाती है।
क्षण भर के लिए रेशमी पर्दा बंद होता है और भगवान महाकाल अपने विशेष कक्ष में गोपनीय रूप से सम्मान के साथ पंहुचा दिए जाते हैं।
देखने वाले स्तब्ध रह जाते हैं कि अभी तो पालकी में भगवान थे अब कहां गायब हो गए लेकिन यह एक विशेष प्रकार की पूजा होती है जिसे देखने की अनुमति हर किसी को नहीं होती।
आजकल कैमरे के माध्यम से जन जन तक इस पूजा को पंहुचाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन भगवान जिस कक्ष में विश्राम करते हैं वह देखने की अनुमति किसी को नहीं है।
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