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Thursday, August 22, 2019

आख़िर क्यू लगाते है श्रीकृष्ण भगवान सिर पर मोर पंख ?

आख़िर क्यू लगाते है श्रीकृष्ण भगवान सिर पर मोर पंख ?

वनवास के दौरान माता सीताजी को पानी की प्यास लगी तभी श्री रामजी ने चारों ओर देखा तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था। कुदरत से प्रार्थना की। हे जंगल जी आसपास जहां कही पानी हो वहां जाने का मार्ग कृपया सुझाईये । तभी वहां एक मयूर ने आ कर श्री रामजी से कहा कि आगे थोड़ी दूर पर एक जलाशय है ।चलिए मैं आपका मार्ग पथ प्रदर्शक बनता हूं । किंतु मार्ग में हमारी भूल चूक होने की संभावना है। श्री रामजी ने पूछा वह क्यों ? तब मयूर ने उत्तर दिया कि मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप चलते हुए आएंगे ।इसलिए मार्ग में मैं अपना एक एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा ।उस के सहारे आप जलाशय तक पहुंच ही जाओगे । यह बात को हम सभी जानते हैं कि मयूर के पंख,एक विशेष समय एवं एक विशेष ऋतु में ही बिखरते हैं ।अगर वह अपनी इच्छा विरुद्ध पंखों को बिखेरेगा तो उसकी मृत्यु हो जाती है ,और वही हुआ। 

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अंत में जब मयुर अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है... उसने मन में ही कहा कि वह कितना भाग्यशाली है, कि जो जगत की प्यास बुझाते हैं, ऐसे प्रभु की प्यास बुझाने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ । मेरा जीवन धन्य हो गया।अब मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही । तभी भगवान श्री राम ने मयुर से कहा कि - मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेरकर,मुझ पर जो ऋणानुबंध चढ़ाया है,मैं उस ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा।अपने सिर पर धारण करके।
तत्पश्चात अगले जन्म में श्री कृष्ण अवतार में उन्होंने अपने माथे पर मयूर पंख को धारण कर वचन अनुसार उस मयूर का ऋण उतारा था।
तात्पर्य यही है कि अगर भगवान को ऋण उतारने के लिए पुनः जन्म लेना पड़ता है, तो हम तो मानव है न !! जाने कितने ही ऋणानुबंध से हम बंधे हैं । उसे उतारने के लिए हमें तो कई जन्म भी कम पड़ जाएंगे।
अतः अपना जो भी भला हम कर सकते हैं इसी जन्म में हमे करना है।

आख़िर क्यू श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी पर उपवास रखना चाहिए ?

ब्रह्मवैवर्त पुराण, कालनिर्णय में आया है कि – 'जब तक अष्टमी चलती रहे या उस पर रोहिणी नक्षत्र रहे तब तक पारण नहीं करना चाहिए; जो ऐसा नहीं करता, अर्थात जो ऐसी स्थिति में पारण कर लेता है वह अपने किये कराये पर ही पानी फेर लेता है और उपवास से प्राप्त फल को नष्ट कर लेता है। अत: तिथि तथा नक्षत्र के अन्त में ही पारण करना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत/उपवास जरूर रहना चाहिए। ऐसा न करने पर बहुत दोष लगता है।
 ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार
भारतवर्ष में रहने वाला जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है, वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। इसमें संशय नहीं है। वह दीर्घकाल तक वैकुण्ठलोक में आनन्द भोगता है। फिर उत्तम योनि में जन्म लेने पर उसे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति उत्पन्न हो जाती है-यह निश्चित है।
 अग्निपुराण के अनुसार
इस तिथिको उपवास करनेसे मनुष्य सात जन्मों के किये हुए पापों से मुक्त हो जाता हैं | अतएव भाद्रपद के कृष्णपक्ष की रोहिणी नक्षत्रयुक्त अष्टमी को उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिये | यह भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है।
 भविष्यपुराण के अनुसार- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है।
 स्कन्दपुराण के अनुसार जो व्यक्ति कृष्ण जन्माष्टमी व्रत नहीं करता, वह जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है।
किसी विशेष कारणवश अगर कोई जन्माष्टमी व्रत रखने में समर्थ नहीं तो किसी एक ब्राह्मण को भरपेट भोजन हाथ से खिलाएं। अगर वह भी संभव नहीं तो ब्राह्मण को इतनी दक्षिणा दें की वो 2 समय भरपेट भोजन कर सके। अगर वह भी संभव नहीं तो गायत्री मंत्र का 1000 बार जप करें ।


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धन्यवाद
अखिल भारतीय तेली संगठन  (ABTS)

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